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Dr Shyama Prasad Mukherji के बलिदान दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम

 Dr Shyama Prasad Mukherji के बलिदान दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम :


Dr Shyama Prasad Mukherji के बलिदान दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम

Dr Shyama Prasad Mukherji के बलिदान दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम 

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदरणीय योगी आदित्यनाथ जी ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में चर्चा आईए जानते हैं समझते हैं उनके बारे में...


परिचय
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के उन महान राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे, जिन्होंने देश की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु अपने जीवन का बलिदान दिया। वे एक प्रखर शिक्षाविद, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राजनीतिक दूरदर्शी थे। उनका जीवन और विचार आज भी भारतवासियों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

Dr Shyama Prasad Mukherji के बलिदान दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम में उपस्थित आदरणीय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी



प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को बंगाल के कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) में हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक प्रसिद्ध न्यायविद, शिक्षाविद और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति थे। श्यामा प्रसाद ने प्रारंभिक शिक्षा अपने घर पर ही प्राप्त की और आगे चलकर उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

उसके बाद उन्होंने इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई की और 1926 में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में कार्यभार संभाला और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण सुधार किए।

राजनीतिक जीवन की शुरुआत
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1929 में बंगाल विधान परिषद के सदस्य के रूप में की। प्रारंभ में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े, लेकिन जब उन्होंने देखा कि कांग्रेस मुस्लिम लीग के तुष्टिकरण में लगी है और हिंदू समाज की उपेक्षा कर रही है, तो उन्होंने उससे दूरी बना ली।

बाद में वे हिंदू महासभा से जुड़े और 1940 में इसके अध्यक्ष बने। उस समय देश में सांप्रदायिक तनाव और विभाजन की राजनीति अपने चरम पर थी। मुखर्जी ने हमेशा "अखंड भारत" की वकालत की और मुस्लिम लीग के पाकिस्तान के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया।

नेहरू मंत्रिमंडल में भूमिका
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, 1947 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के अंतरिम मंत्रिमंडल में डॉ. मुखर्जी को उद्योग और आपूर्ति मंत्री बनाया गया। उन्होंने इस पद पर रहते हुए कई उद्योगों की नींव रखी और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए।

हालाँकि, जल्द ही उनके और नेहरू के बीच वैचारिक मतभेद उभरने लगे, विशेषकर जम्मू-कश्मीर नीति, अनुच्छेद 370 और पाकिस्तान से संबंधों को लेकर। डॉ. मुखर्जी ने पाकिस्तान से हुए नेहरू-लियाकत समझौते का विरोध किया और भारत में हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की।

भारतीय जनसंघ की स्थापना
1951 में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस की नीतियों से असंतुष्ट होकर एक नए राष्ट्रवादी राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ की स्थापना की। इस दल का उद्देश्य भारत की एकता, अखंडता और हिंदू संस्कृति का संरक्षण था। यह दल आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का आधार बना।

Dr Shyama Prasad Mukherji के बलिदान दिवस के अवसर पर लखनऊ में आयोजित पुष्पांजलि कार्यक्रम




भारतीय जनसंघ का नारा था — "एक देश, एक विधान, एक निशान, एक प्रधान।" यह नारा जम्मू-कश्मीर में अलग झंडा और संविधान के विरोध में था। डॉ. मुखर्जी का मानना था कि यदि भारत एक राष्ट्र है तो पूरे देश में एक समान कानून और संविधान होना चाहिए।

जम्मू-कश्मीर आंदोलन और बलिदान
1953 में डॉ. मुखर्जी ने जम्मू-कश्मीर में विशेष दर्जे (अनुच्छेद 370) का विरोध करते हुए एक आंदोलन शुरू किया। उन्होंने बिना अनुमति जम्मू-कश्मीर में प्रवेश किया ताकि वे वहाँ के लोगों को बता सकें कि अनुच्छेद 370 भारत की एकता के लिए खतरा है।

उन्हें श्रीनगर में गिरफ्तार कर लिया गया और 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में जेल में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु को लेकर आज भी कई प्रश्न उठते हैं, और यह एक राजनैतिक साजिश का हिस्सा माना जाता है।

डॉ. मुखर्जी की विचारधारा
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की विचारधारा राष्ट्रवादी थी। वे भारतीय संस्कृति, सनातन मूल्यों, और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण की राजनीति के विरोधी थे। वे मानते थे कि सभी नागरिकों को समान अधिकार और कर्तव्य मिलना चाहिए, चाहे उनका धर्म, जाति या भाषा कुछ भी हो।

वे शिक्षा और उद्योग को देश की रीढ़ मानते थे। कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उन्होंने शिक्षा में सुधार के अनेक प्रयास किए, और केंद्रीय मंत्री के रूप में उद्योगों की नींव रखी।

डॉ. मुखर्जी की विरासत
डॉ. मुखर्जी के विचार आज भी भारतीय राजनीति में जीवंत हैं। भारतीय जनसंघ के रूप में शुरू हुई उनकी पार्टी आज भारतीय जनता पार्टी के रूप में भारत की सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। उनके विचारों को आगे बढ़ाते हुए कई सरकारों ने अनुच्छेद 370 को हटाने की दिशा में कदम बढ़ाए और अंततः 5 अगस्त 2019 को इसे समाप्त कर दिया गया।

उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर भारत भर में उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। अनेक संस्थानों, विश्वविद्यालयों, और मार्गों का नाम उनके नाम पर रखा गया है।

निष्कर्ष
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एक महान राष्ट्रभक्त, निर्भीक नेता और शिक्षाविद थे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि जब तक राष्ट्रहित सर्वोपरि रहेगा, तब तक समाज और देश की प्रगति संभव है। उनके बलिदान और विचार हमें आज भी प्रेरणा देते हैं कि राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए किसी भी प्रकार की चुनौती से डरना नहीं चाहिए।

उनका यह कथन आज भी अमर है:

"मैं भारत की एकता के लिए किसी भी हद तक जा सकता हूं, यदि आवश्यकता पड़ी तो बलिदान देने से भी पीछे नहीं हटूंगा।"


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